बुधवार, 12 मई 2010

हास्य कविता

शहर के पुराने कारागार में ,
कुछ कैदी खड़े थे कतार में |


एक ने सिपाही से पूछा,"क्या मंत्री जी दौरे पर हैं? सुना है मिठाई बंटनी है |"
सिपाही बोला ,"मंत्री जी तो हैं ,पर दौरे पर नहीं ,घोटाले में फंसे हैं ,उनकी सजा यहाँ कटनी है "|


इतना सुनते ही कैदी ख़ुशी से पागल हो गया ,
बोला अब आयेगा जीने का मज़ा |
और जन्नत बन जाएगी मेरी ये दो महीने की सजा |


जिनके लिए मैं जेबें कतरता था ,वो सब सुख मैं अब यहीं पाउँगा ,
दिन भर देखूंगा हिंदी फ़िल्में ,और रात को अंग्रेजी पी के टुन्न हो जाऊंगा |


और बहार जाके क्या मिलेगा मुझे ,
एक बड़ा हाथ मरूँगा और फिर छः  महीने के लिए वापस आऊंगा |


सिपाही भी ताव में आ गया और बोला ,
तू  क्या समझता है ,तेरी ही ऐश है ?
अरे मेरे बैंक में जो जमा है ,वो सब मंत्री जी का कैश है |
और मन्त्रिवर का मुर्गा लेने मैं ही फाइव  स्टार जाता हूँ ,
यहाँ तो एक लाता  हूँ ,पहले दो घर भिजवाता हूँ |


अभी हाल ही की  बात है ,एक मंत्री धोखाधड़ी में अन्दर आये थे ,
बस उसी हफ्ते मैंने अपने दोनों कमरों में कूलर लगवाए थे |


अब मेरे भी हालात सुधर गए हैं ,मैं भी दान -भीख देता हूँ ,
और नेता जी की मन से सेवा करो ,
नए सिपाहियों को यही सीख देता हूँ |

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