गुरुवार, 6 मई 2010

यादों की गलियाँ


यादों की इन् गलियों में बहुत आना जाना है मेरा ,
यहीं कुछ घरों में तो अब ठिकाना है मेरा .
    इन्ही यादों के साथ रो लेता हूँ  मैं कभी,
    तो कभी ये यादें हसने का बहाना है मेरा.


जी करता है कल को भुला  के मैं बस आज में जी लूँ ,
पर होके पत्थर-दिल मैं कैसे ये कड़वा घूँट पी लूँ .
    आखिर इन्ही यादों में कैद गुज़रा ज़माना है मेरा ,
     यादों की इन् गलियों में बहुत आना जाना है मेरा.


न जाने कैसे ये साल एक पल में गुज़र जाते हैं ,
कुछ लोग हैं ऐसे जो मुझे बहुत याद आते हैं ,
    दोनों हाथों से लुटा दूँ तो  भी ख़तम न हो ,
    यादों का अनमोल ,कुछ ऐसा खज़ाना है मेरा .


यादों की इन् गलियों में बहुत आना जाना है मेरा!!!!!



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